आनंद के लुटे ख़ज़ाने
भई सतगुरु के दरबार में
सतगुरु के दरबार में
भई संतो के दरबार में
धन में सुख ढूंडन वाले
तुम धनवालो से पूछ लो
उन्हें टाइम नहीं मिलता है
पल भर भी वार त्यौहार में
आनंद के लुटे ख़ज़ाने
भई सतगुरु के दरबार में
कोठी बंगले कारो की
भाई कमी नहीं उनके पास में
वो भी यूं केहरा से
हम बहुत दुखी संसार में
आनंद के लुटे ख़ज़ाने
भई सतगुरु के दरबार में
चाचा ताऊ कुटुंब कबीला
बहुत बड़ा परिवार है
वो देखे रोज़ कचेहरी
आपस की तकरार में
आनंद के लुटे ख़ज़ाने
भई सतगुरु के दरबार में
न सुख है इस सत्संग में भई
न सुख बन के जान में
गुरु ब्रह्मानंद समझावे
सुख है तो अगम विचार में
आनंद के लुटे ख़ज़ाने
भई सतगुरु के दरबार में
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